3 शार्ट स्टोरी लघुकथा = अनाथ बहु ( सामाजिक )
लघुकथा जोनर समाजिक
शीर्षक = अनाथ बहु
शाम का समय था। साधना जी रसोई में कुछ बना रही थी कि तभी अचानक दरवाज़े पर घंटी बजती । साधना जी घंटी की आवाज़ सुन कर दरवाज़े की तरफ दौड़ते हुए कहती " लो आ गयी मेरी दोस्त मण्डली "
साधना जी दरवाज़ा खोलती हे । सामने उनकी कॉलेज की चार सहेलियां कौशल्या, सुमन , रेशमा और माया जो की अब उनकी ही तरह बहु और दामादो वाली हो गयी थी ।
वो चारो एक दूसरे के गले लगती और घर के अंदर आती और कहती " अमेजिंग, साधना घर तो बेहद ही खूबसूरत सजाया हे ऐसा लग रहा हे किसी प्रोफेशनल डिज़ाइनर ने सजाया हे , ज़रूर ये सब तेरा ही कमाल होगा, तुझे बहुत शौक था घर सजाने का "
इससे पहले साधना जी कुछ कहती तभी कौशल्या कहती " कहाँ हे तेरी बहु हमें भी तो मिला ज़रा उससे हम भी तो देखे तेरे बेटे की पसंद को "
"कौशल्या वो क्या हे ना नताशा अपने मायके गयी हे " साधना जी ने कहाँ।
तभी सुमन कहती हे " हमने तो सुना था कि तुम्हारी बहु अनाथ आश्रम में पली बड़ी हे तो फिर मायके किस के घर गयी हे , क्या कोइ रिश्तेदार भी उसका यहाँ "
साधना जी अंदर से स्नैक्स ले कर आती और उन्हें देती और वो लोग ऊँगली चाट कर कहते " वाह साधना तेरी कुकिंग का जवाब नही "
तब साधना जी सुमन का जवाब देते हुए कहती " तुम लोगो ने सही सुना हे मेरी बहु अनाथ थी, और अनाथ आश्रम में ही पली बड़ी हे और लड़की जहाँ पली बड़ी होती हे वही उसका मायका होता हे तो इस लिए वो अपने मायके अनाथ आश्रम गयी हे "
साधना की बात सुन चारो सहेलियां मुस्कुराती हे । और कोल्ड्रिंक्स का आंनद लेती हे । साधना समझ गयी थी कि ये लोग मेरे इस तरह अनाथ आश्रम को बहु का मायका कहने वाली बात पर हस रही हे ।
चारो सहेलियां उसके घर को देख कर मन ही मन सोच रही थी कि आखिर कार इसका घर इतना खूबसूरत कैसे लग रहा हे । एक एक चीज बिलकुल अपनी जगह पर और दीवारों ओर लगी तस्वीरे कितनी खूबसूरत लग रही हे इस घर में चार चाँद लगा रही हे ।
काफी देर बाद रेशमा कहती " साधना क्या तुम्हारी बहु को पता नही था कि आज घर में इतने सालो बाद तुम्हारी सास की सहेलियां आ रही हे , फिर भी वो अनाथ आश्रम मेरा मतलब मायके चली गयी "
"वो दरअसल आज अनाथ आश्रम में एक बच्चे का पहला जन्म दिन था और नताशा उसमे जाना चाहती थी इस लिए मेने उसे आंनद के साथ भेज दिया थोड़ी बहुत देर में आ जाएगी " साधना जी ने कहाँ
" वाह भाई सास हो तो तुम जैसी, बहु ने काम से बचने का बहाना ढूंढा और तुमने उसे दे भी दिया और खुद सारा काम किया " चारो सहेलियों ने साधना पर हस्ते हुए कहाँ।
थोड़ी देर बाद साधना बोली आओ खाना लग गया हे मेज पर चलो खाना खाते हे । आज तुम सब की पसंद का खाना बना हे ।
चारो सहेलियां खाने की मेज पर बैठ कर खाने का लुत्फ़ उठाती और उंगलियां चाट चाट कर खाती तभी उनमे से एक सहेली कौशल्या कहती " साधना तुम्हारी दाद देना पड़ेगी जो तुमने एक अनाथ लड़की को अपने घर की बहु बना लिया सिर्फ अपने बेटे की पसंद के खातिर , तुम्हे पता हे अनाथ आश्रम में रहने वाले लड़के और लड़कियों की ना जात का पता चलता हे ना बिरादरी और ना ही धर्म का।
पता नही कहा कहा और किस खानदान की होती हे । "
तभी माया कहती " हाँ साधना तुमने बहुत जल्दी हथियार डाल दिए अपने बेटे की पसंद के आगे अब देखों वो केसा तुम्हारे बेटे को ऊँगली पर नचा रही है और आज बहाना बना कर अनाथ आश्रम चली गयी और तुम ये सब काम अकेले कर रही हो "
तभी रेशमा कहती " इससे तो तुम अपनी ही बिरादरी की किसी लड़की के साथ अपने बेटे की शादी करा देती कुछ जात पात और धर्म का तो पता होता "
सुमन रेशमा की बात काटते हुए कहती है " ये अनाथ आश्रम की लड़किया चिड़चिड़ी होती है क्यूंकि इन्हे कभी माँ बाप का प्यार मिला नही होता है इसलिए ये सास ससुर की क्या इज़्ज़त करेगी । तुम्हारी बहु का अगर मायका होता कोइ भाई या बहन होता तो उससे उसकी कुछ शिकायत भी कर सकती थी तुम। अब वो जो कुछ भी करे तुम उसके घर वालो से कुछ शिकायत भी नही कर सकती हो। तुम बड़ी होशियार हुआ करती थी कॉलेज में ऐसी नादानी क्यू कर बैठी एक अनाथ को अपनी बहु बना लायी बिना ज़माने की परवाह किये बिना "
खाना परोस रही साधना वही पास पड़ी कुर्सी पर बैठी और गहरी सी सास ली और बोली " तुम लोगो ने मेरी अनाथ बहु के बारे में अपनी अपनी राय दे दी अब मैं कुछ कहु उसके बारे में "
"हाँ, हाँ ज़रूर जब से हम ही बोले जा रहे है तुम भी बताओ अपनी बहु की खामियों के बारे में जिससे हमें बात करने का अच्छा टॉपिक मिले " चारो ने ज़ोर से हस कर कहाँ
"तो सुनो मेरी अनाथ बहु की खामियों के बारे में "साधना जी ने कहाँ
ये घर जो इतना सजा हुआ है और तुम लोग बार बार किसी ना किसी बहाने से इसे देख रही हो और सोच रही हो कि आखिर ये घर सजाया किसने है तो सुनो उसी अनाथ लड़की ने जिसे शायद कभी अरमान था घर सज़ाने का लेकिन अनाथ होने कि वजह से उस अनाथ आश्रम को सजा ना सकी अपने हिसाब से।
लेकिन अब वो अपने इस घर को दुल्हन कि तरह सजाये रखती है ।
चारो सहेलियों ने चौक कर कहाँ " अच्छा तो ये नताशा ने सजाया है बहुत ही हुनर मंद है तुम्हारी बहु तो "
सिर्फ घर ही नही जो स्नेक्स तुमने खाये थे वो भी उसी ने बनाये थे और ये खाना भी वही बना कर गयी थी जो तुम लोगो ने मेरे हाथ का समझकर ऊँगली चाट कर खा लिया।
उन चारो ने एक दूसरे को गौर से देखा ।
वो तुम चारो से मिलना चाहती थी कल से ही तैयारी में लगी थी मुझसे ज्यादा उसे तुम लोगो से मिलने कि ख्वाहिश थी । लेकिन आज सुबह ही उसे पता चला कि अनाथ आश्रम में एक बच्चे का जन्म दिन है जिसे नताशा ही पाल रही थी । अनाथ आश्रम में वहा रहने वाले ही एक दूसरे का परिवार होते है इस बात को नताशा समझती थी । और मैं उसका उदास चेहरा देख कर समझ गयी थी कि ये जाना चाहती है । इसलिए मेने उसे स्वयं भेज दिया लेकिन फिर भी वो सारा खाना बना कर चली गयी ताकि उसकी माँ को तकलीफ ना हो।
हाँ कौशल्या तुम क्या कह रही थी कि अनाथ आश्रम कि लड़कियों कि जात पात और धर्म का पता नही होता है , तुम्हारी बहु तो तुम्हारे ही धर्म और जात कि थी फिर आखिर वो तुम्हारे बेटे को लेकर दूसरे शहर क्यू चली गयी ।
और माया तुम, तुम तो अपनी पसंद की लड़की को अपने बेटे की बहु बना कर लायी थी इसलिए की वो तुम्हारी बात मानेगी लेकिन क्या हुआ तुम्हारा बेटा अब तुम से बात भी नही करता क्यूंकि जिससे वो प्यार करता था वो लड़की गरीब थी।
और रेशमा तुम, तुम क्या कह रही थी की अनाथ आश्रम की लड़किया चिड़चिड़ी होती है क्यूंकि उन्हें माँ बाप का प्यार नही मिला होता है । सच बात तो ये है की अनाथ आश्रम के बच्चे उन लड़कियों से ज्यादा रिश्ते निभाने में माहिर होती है जिनकी परवरिश उनके माँ बाप करते है । क्यूंकि उन्हें रिश्तो की अहमियत पता होती है उन्हें पता होता है की माँ बाप क्या होते है और भाई बहन क्या होते है , हर रिश्ते की क्या अहमियत होती है।
अब तुम अपने बेटे अरमान के लिए अपने सगे भाई की बेटी को बहु बना कर लायी थी जो रिश्ते में तुम्हारी भतीजी थी। उसे तो बखूबी पता था की तुम उसकी बुआ हो तुम्हारा उसके साथ बुआ और सास दोनों का रिश्ता है । फिर भी उसने तुम्हारे साथ एक भी रिश्ता सही से नही निभाया और कुछ ही दिनों में तुम्हारे बेटे को तुम्हारे खिलाफ कर दिया और अपने साथ घर दामाद बना कर ले गयी ।
अब बताओ क्या फायदा ऐसा धर्म और जात पात देख कर लड़की को घर की बहु बना कर लाने का जिसका धर्म, जात, मायका, आदि , अंत सब पता हो फिर भी वो तुम्हे दो वक़्त की रोटी इज़्ज़त से ना दे सके तो इससे अच्छा तो मेरी अनाथ बहु है जो मुझे मेरी सगी बेटी से भी बढकर समझती है क्यूंकि उसे एहसास है कि माँ क्या होती है और हर रिश्ते कि क्या अहमियत होती है । ये रिश्ते ही होते है जो इंसान को अनाथ होने से बचाते है ।
साधना कि बात सुन चारो सहेलियों कि आँखे भर आयी और वो रोते हुए बोली " साधना हमें माफ करदो हम ही गलत थे , तुम्हारी अनाथ बहु हमारी जानी पहचानी बहुओ से लाख गुना अच्छी है , हम बहुत शर्मिंदा है हम तो यहाँ तुम्हारे कान भरने आये थे तुम्हारी अनाथ बहु के खिलाफ ताकि तुम भी हमारी तरह अपने बेटों से अलग हो जाओ लेकिन अब हम शर्मिंदा है "
"कोइ बात नही तुम चारो अब अपने आंसू साफ करो मेरी बहु आती ही होगी तुम्हे इस तरह देखे गी तो समझें गी शायद खाना सही नही बना था जबकी खाने वाले तो उंगलियां तक चाट गए" साधना ने हस्ते हुए कहा
उसकी बात सुन चारो सहेलियां हसने लगी।
थोड़ी देर बाद नताशा और आंनद आते है।वो चारो नताशा के साथ ऐसा घुल मिल जाती है मानो बरसो बाद मिली हो। नताशा उन्हें इतनी इज़्ज़त दे रही थी और खुश हो रही थी जितना कि उनकी खुद कि बहुओ ने भी नही दी थी जो कि उनके जात और धर्म और अच्छे पढ़े लिखें खानदानो से थी ।
जोनर = समाजिक
Shnaya
02-Jun-2022 04:10 PM
👏👌
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Reyaan
10-May-2022 11:53 AM
Very nice 👍🏼
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Renu
02-May-2022 03:34 PM
👍👍
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